पश्चिम बंगाल, 18 जुलाई 2025: देश में साइबर अपराध के खिलाफ एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर स्थापित करते हुए कल्याणी अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुबर्थी सरकार ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ की तकनीक का उपयोग करके बड़ी ठगी करने वाले नौ आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह वह दुर्लभ मामला है जिसमें अदालत ने इस तरह की ठगी को ‘आर्थिक आतंकवाद’ करार दिया और आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 338 और आईटी अधिनियम समेत कुल 11 धाराओं के तहत कठोर दंड सुनाया।

घटना की पृष्ठभूमि
- साइबर ठगों ने रानाघाट (पश्चिम बंगाल) में रहने वाले एक वरिष्ठ नागरिक से संपर्क किया।
- उन्होंने खुद को केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) या पुलिस अधिकारी बताकर, पीड़ित को ‘डिजिटल अरेस्ट’ की धमकी दी और भय उत्पन्न किया।
- यह आरोप लगाया गया कि पीड़ित के खिलाफ डिजिटल साक्ष्यों का भंडार है।
- आरोपियों ने जल्द जुर्माना न चुकाने की स्थिति में गिरफ्तारी करने की बात कहकर मानसिक दबाव डाला।
- डरा-धमकाकर रिटायर्ड प्रोफेसर और राज्य सरकार के एक पूर्व अभियंता ने घबरा कर ₹1 करोड़ आरोपियों के खातों में ट्रांसफर कर दिए।
जांच और गिरफ्तारी
- केस की जांच महत्वपूर्ण बन पड़ी, जिसके बाद पश्चिम बंगाल सीआईडी ने महाराष्ट्र, हरियाणा और गुजरात से आरोपियों को गिरफ्तार किया।
- सीआईडी की रिपोर्टानुसार, दर्जनों फर्जी पासबुक, ATM कार्ड, सिम कार्ड और मोबाइल फोन जब्त किए गए।
- डिजिटल फॉरेंसिक जांच से आरोपियों के लाभार्थी खातों और कॉल डेटा का विश्लेषण किया गया।
- सीआईडी आइजीपी अखिलेश चतुर्वेदी ने बताया कि इस गिरोह के कई बैंक खाते और मोबाइल नंबर कई राज्यों में फैले हुए थे।

अभियोजन, गवाह और चार्जशीट
- अभियोजन पक्ष के विशेष लोक अभियोजक बिवास चटर्जी ने अदालत को जानकारी दी कि दोषियों ने केवल ₹1 करोड़ ही नहीं, बल्कि देशभर के करीब 108 पीड़ितों से कुल मिलाकर लगभग ₹100 करोड़ की ठगी की थी।
- यह गिरोह पहले भी अन्य राज्यों में ऐसी धोखाधड़ी कर चुका था — इन पर अन्य राज्यों में भी मुकदमे चलने की योजना बनाई जा रही है।
- चार्जशीट में कुल 2600 पेज का दस्तावेज था, जिसे जांच अधिकारियों ने अदालत में दर्ज कराया।
- अदालत में 29 गवाहों ने गवाही दी, जिनमें अंधेरी (पश्चिम) थाना के SHO और SBI, PNB, केनरा बैंक, बंधन बैंक, फेडरल बैंक, उज्जीवन स्मॉल फाइनेंस बैंक के स्थानीय शाखा प्रबंधक शामिल थे।
अदालत का फैसला और कानूनी पहलू
- दोषियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 338 (मानहानि, बुरी नीयत), आईटी अधिनियम की धारा 66D (ऑनलाइन फ्रॉड), धारा 67 (अश्लीलता), उस पर संगठित चोरी और आपराधिक साजिश की धाराएं भी शामिल हैं।
- न्यायाधीश सुबर्थी सरकार ने फैसला सुनाया कि डिजिटल माध्यम से की गई यह ठगी न सिर्फ आर्थिक अपराध है, बल्कि समाज में भय और आतंक पैदा करने वाला, ‘आर्थिक आतंकवाद’ है।
- आरोपितों में एक महिला भी शामिल थी, जो गिरोह की रणनीतिक योजना का हिस्सा थी।
‘आर्थिक आतंकवाद’ की परिभाषा
- विशेष लोक अभियोजक चटर्जी ने अदालत में यह बयान दिया कि आरोपों की गंभीरता ऐसी है कि इसे सिर्फ ठगी नहीं कहा जा सकता।
- जब तकनीक हथियार की तरह प्रयोग हो और आम लोगों को मानसिक रूप से आतंकित किया जाए, तब यह ‘आर्थिक आतंकवाद’ बन जाता है।
“यह सिर्फ ठगी नहीं, बल्कि आर्थिक आतंकवाद है — जिसने सेवानिवृत्त प्रोफेसर और सरकार सेवानिवृत्त अभियंता के जीवनभर की कमाई को छीना और देश के बाहर ट्रांसफर किया।”
— विशेष लोक अभियोजक बिवास चटर्जी
ठगी की कार्यप्रणाली और साइबर जांच
- आरोपियों ने विभिन्न राज्यों में फैले अपने नेटवर्क का उपयोग करके भय फैलाया।
- फर्जी फोन कॉल, दर्जनों मोबाइल सिम, नकली फर्जी बैंक खाते गठित करके आरोपियों ने हजारों लोगों को निशाना बनाया।
- बैंक और कॉल डेटा से डिजिटल जांच की प्रक्रिया से आरोपियों का ठोस नेटवर्क सामने आया।
“डिजिटल जांच के जरिए बेनिफिशियरी खातों और कॉल डेटा का विश्लेषण करके इस गिरोह तक पहुंचा गया।”
— सीआईडी आईजीपी अखिलेश चतुर्वेदी
यह फैसला क्यों अहम?
- न्यायिक प्राथमिकता में बदलाव
- तकनीक को हथियार बनाकर मामलों में अदालत ने नया दृष्टिकोण अपनाया।
- सतर्कता और जागरूकता
- आम जनता को सरकारी एजेंसी होने का दावा करने वाली कॉल पर कभी जवाब न देने पुनः सुनिश्चित करने की सलाह दी जाती है।
- कानूनी मिसाल
- इस सजा से विधि क्षेत्र में आर्थिक अपराध की परिभाषा में बदलाव होगा।
- साइबर ठगों के लिए चेतावनी
- यह स्पष्ट संदेश है कि डिजिटल माध्यमों पर की जाने वाली ठगी को अब नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय असर
- भविष्य में ऐसी घटनाओं पर राज्यों और केंद्र के बीच बेहतर सामंजस्य और जांच तकनीक का उपयोग सुनिश्चित होगा।
- Financial Intelligence Units और सायबर फॉरेंसिक तकनीकों की मदद से देशव्यापी सतर्कता बढ़ेगी।
- डिजिटल लेन-देन में सुरक्षा और पारदर्शिता बढ़ाने की ओर सरकारी प्रयास मजबूत होंगे।
सवाल–जवाब
प्रश्न | जवाब |
---|---|
डिजिटल अरेस्ट क्या है? | एक धमकीपूर्ण कॉल डिजास्टर जिसमें पीड़ित को गिरफ्तार करने की धमकी होती है। |
आर्थिक आतंकवाद? | ऐसी संज्ञा जब तकनीक को टूल बनाकर आम जनता को मानसिक आतंकित किया जाए। |
सजा क्या सुनाई गई? | 9 आरोपियों को उम्रकैद, भारतीय दंड संहिता और आईटी अधिनियम की कुल 11 धाराओं के तहत सजा दी गई। |
मुकदमे की अवधि? | करीब 5 महीने तक चली सुनवाई, 2600 पेज चार्जशीट और 29 गवाहों कीली। |
भविष्य में इसकी प्रभाव? | साइबर अपराध की जांच और सेंचुरीज के लिए नए युग का आरंभ और तकनीकी जांच का प्रोत्साहन। |
प्रमाणिक सुरक्षा सुझाव
- ऐसे कॉल पर तुरंत भरोसा न करें, जहाँ सरकारी एजेंसी होने का दावा हो।
- कॉल खत्म करके थाने या CBI हेल्पलाइन पर सत्यापन करनें की सलाह दी जाती है।
- मोबाइल बैंकिंग और आधार जैसी संवेदनशील जानकारियों को साझा न करें।
- धोखाधड़ी हो जाने पर तुरंत पुलिस या साइबर क्राइम सेल में शिकायत करें।
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