लखनऊ,11 जुलाई 2025:
उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर बड़ा उलटफेर होने जा रहा है। सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि राज्य के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य बहुत जल्द अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं। यह इस्तीफा न तो किसी सियासी दबाव का नतीजा है और न ही किसी असंतोष का संकेत, बल्कि यह इस्तीफा भारतीय जनता पार्टी (BJP) द्वारा दी जा रही एक नई और बड़ी जिम्मेदारी की ओर इशारा करता है। बताया जा रहा है कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें उत्तर प्रदेश बीजेपी का नया प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का फैसला कर लिया है।

दिल्ली में मौर्य की उच्च स्तरीय बैठकें बनीं निर्णायक
पार्टी सूत्रों का कहना है कि पिछले कुछ दिनों में केशव मौर्य ने दिल्ली में कई अहम नेताओं से मुलाकात की, जिनमें गृहमंत्री अमित शाह और संगठन महामंत्री बी.एल. संतोष शामिल हैं। इन बैठकों में उत्तर प्रदेश बीजेपी की आगामी रणनीति को लेकर गंभीर चर्चा हुई। शुरुआत में केशव मौर्य प्रदेश अध्यक्ष का पद संभालने को लेकर संकोच में थे, लेकिन शीर्ष नेतृत्व के निर्देश और भरोसे के बाद उन्होंने सहमति दे दी।
प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए तीन नाम थे दौड़ में
भाजपा सूत्रों के अनुसार, प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए तीन प्रमुख नामों पर विचार किया गया था। ये नाम सामाजिक समीकरण को ध्यान में रखकर तय किए गए थे –
- मौर्य जाति से केशव प्रसाद मौर्य
- कुर्मी जाति से एक वरिष्ठ संगठन नेता
- सैनी बिरादरी से एक युवा विधायक
हालांकि पार्टी के भीतर और बाहर दोनों स्तर पर यह माना जा रहा था कि संगठन क्षमता, राजनीतिक अनुभव और सामाजिक प्रभाव के मामले में केशव मौर्य सबसे मजबूत दावेदार हैं। उन्होंने पहले भी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में काम किया है और 2014–2017 के बीच पार्टी को उत्तर प्रदेश में मजबूत आधार दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।
13 से 17 जुलाई के बीच हो सकती है घोषणा
विश्वस्त सूत्रों की मानें तो भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व 13 जुलाई से 17 जुलाई 2025 के बीच किसी भी दिन केशव मौर्य के नाम का ऐलान कर सकता है। पार्टी की रणनीति है कि पहले प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा कर दी जाए और उसके बाद नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की ताजपोशी की जाए।

यह निर्णय बताता है कि पार्टी उत्तर प्रदेश को लेकर कितनी गंभीर है और इसे मिशन 2027 के केंद्र में रख रही है।
मिशन 2027 के लिए बीजेपी का ‘ओबीसी कार्ड’
उत्तर प्रदेश में लगभग 45 प्रतिशत वोटर पिछड़ी जातियों (OBC) से आते हैं। भाजपा लंबे समय से इस वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की रणनीति पर काम कर रही है। केशव मौर्य का संबंध मौर्य/कुशवाहा बिरादरी से है, जो राज्य में ओबीसी समुदाय की एक बड़ी और प्रभावशाली जाति मानी जाती है। उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से बीजेपी को यह संदेश देने का अवसर मिलेगा कि पार्टी पिछड़ों को नेतृत्व में आगे लाने के लिए प्रतिबद्ध है।
2022 में सीट गंवाने के बावजूद शीर्ष नेतृत्व का भरोसा बरकरार
हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव में केशव मौर्य को सिराथू सीट से हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन इसके बावजूद पार्टी नेतृत्व ने उन पर से भरोसा नहीं हटाया। उन्हें दोबारा डिप्टी सीएम बनाया गया और महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी सौंपी गई।
यह फैसला यह भी दर्शाता है कि भाजपा नेतृत्व केवल चुनावी जीत के आधार पर नेताओं की उपयोगिता नहीं तय करता, बल्कि संगठनात्मक क्षमता और जमीनी पकड़ को भी प्राथमिकता देता है।
संभावित इस्तीफे के बाद क्या होगा अगला कदम?

अगर केशव मौर्य डिप्टी सीएम पद से इस्तीफा देते हैं तो योगी सरकार में कुछ और बदलाव संभव हैं। उनके स्थान पर कोई नया ओबीसी चेहरा सरकार में शामिल हो सकता है, जो जातीय समीकरणों को संतुलित कर सके। वहीं दूसरी ओर, प्रदेश संगठन की कमान संभालने के बाद मौर्य मिशन 2027 के लिए पार्टी को बूथ स्तर तक सशक्त करने में जुट जाएंगे।
सियासी संकेत क्या कहते हैं?
राजनीतिक जानकारों की मानें तो केशव मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से भाजपा दोहरे फायदे की उम्मीद कर रही है—
- संगठन की मजबूत पकड़ और संचालन क्षमता
- ओबीसी वोट बैंक में एक बार फिर से गहरी पैठ
यह बदलाव विपक्ष के लिए भी एक कड़ी चुनौती हो सकता है, क्योंकि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस लगातार पिछड़े वर्गों को लुभाने की कोशिश में लगी हैं। मौर्य की नियुक्ति इस वर्ग के भीतर भाजपा की पकड़ को और पुख्ता कर सकती है।
बीजेपी के भीतर क्यों जरूरी है यह बदलाव?
बीजेपी का मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष भावना त्रिपाठी (काल्पनिक नाम) अब लगभग दो वर्ष से अधिक समय से पद पर हैं। सूत्रों के अनुसार, पार्टी में नीचे से ऊपर तक फीडबैक दिया जा रहा था कि अब संगठन में एक नया चेहरा और नई ऊर्जा जरूरी है। खासकर, आगामी पंचायत और निकाय चुनावों से पहले पार्टी को हर मोर्चे पर तैयार करना जरूरी है।
केशव मौर्य जैसे अनुभवी नेता की वापसी से संगठन में कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा और भाजपा को चुनावी लाभ मिलने की संभावना भी प्रबल हो जाती है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में बदलाव की आहट अब तेज हो चुकी है। बीजेपी अपने रणनीतिक फैसलों के लिए जानी जाती है और केशव मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का निर्णय उसी रणनीति का हिस्सा है। यह फैसला न केवल संगठनात्मक मजबूती की ओर इशारा करता है, बल्कि 2027 के चुनावों को लेकर पार्टी की गंभीर तैयारी का भी संकेत है।
अब देखना यह है कि पार्टी इस निर्णय को कब सार्वजनिक करती है और केशव मौर्य किस अंदाज में अपनी नई पारी की शुरुआत करते हैं। एक बात तो तय है—यूपी की सियासत में अगला अध्याय बेहद दिलचस्प होने वाला है।
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