बॉलीवुड के भाईजान सलमान खान एक बार फिर से चर्चा में हैं, लेकिन इस बार वजह है उनका एक बिल्कुल नया और गंभीर प्रोजेक्ट—‘बैटल ऑफ गलवान’। यह फिल्म भारत-चीन सीमा विवाद पर आधारित है, और इस विषय पर बनी फिल्मों का ट्रैक रिकॉर्ड अब तक कुछ खास नहीं रहा है।
भारत और चीन के बीच सैन्य टकराव जैसे विषयों को फिल्मों में दिखाना, चाहे वह 1962 के युद्ध पर आधारित हो या हालिया गलवान संघर्ष पर, अब तक बॉक्स ऑफिस के लिहाज से खास फायदेमंद नहीं साबित हुआ है। ऐसे में सवाल उठता है—क्या सलमान खान की ये नई फिल्म इस ट्रेंड को बदल पाएगी?
सलमान खान की ‘सिकंदर’ के बाद ‘बैटल ऑफ गलवान’

मार्च 2025 में रिलीज़ हुई सलमान खान की फिल्म ‘सिकंदर’ को लेकर काफी उम्मीदें थीं, लेकिन फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप रही। करीब 16 साल के लंबे गैप के बाद सलमान की यह पहली बड़ी असफलता थी, जिसने उनके करियर को झटका दिया।
फैंस एक बार फिर से सलमान से ज़ोरदार कमबैक की उम्मीद कर रहे हैं। इस बीच उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी फिटनेस को लेकर पोस्ट्स शेयर किए और नए प्रोजेक्ट के लिए खुद को तैयार बताया। इसके बाद उनकी अगली फिल्म ‘बैटल ऑफ गलवान’ का अनाउंसमेंट हुआ, जो 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच हुए टकराव पर आधारित है।
फिल्म की अनाउंसमेंट के साथ ही सलमान के लुक और वीडियो को दर्शकों से पॉजिटिव रिएक्शन मिला, लेकिन असली परीक्षा होगी जब यह फिल्म थिएटर में दर्शकों की कसौटी पर उतरेगी।
भारत-चीन युद्ध पर बनी फिल्मों का इतिहास
1. Ratha Thilagam (1963): तमिल इंडस्ट्री की पहली कोशिश

भारत-चीन युद्ध (1962) के एक साल बाद तमिल सिनेमा में फिल्म ‘Ratha Thilagam’ बनाई गई। इसमें शिवाजी गणेशन और सावित्री ने प्रमुख भूमिकाएं निभाईं। फिल्म एक प्रेम कहानी के साथ युद्ध की पृष्ठभूमि को जोड़ती थी। हालांकि, आलोचकों ने एक्टिंग की तारीफ की, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर फिल्म असफल रही।
2. हकीकत (1964): एकमात्र सफल फिल्म

हिंदी सिनेमा में भारत-चीन युद्ध पर बनी सबसे चर्चित फिल्म ‘हकीकत’ थी। चेतन आनंद द्वारा निर्देशित इस ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म में धर्मेंद्र, बलराज साहनी, संजय खान और विजय आनंद जैसे सितारे थे। फिल्म ने सैनिकों के मनोविज्ञान और युद्ध की क्रूरता को बेहद संवेदनशील तरीके से पेश किया।
‘हकीकत’ को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और फिल्मफेयर अवॉर्ड में चेतन आनंद को बेस्ट डायरेक्टर का सम्मान भी मिला। यह फिल्म आज भी भारत की सबसे प्रभावशाली वॉर फिल्मों में गिनी जाती है।
3. प्रेम पुजारी (1970): देव आनंद की कोशिश

चेतन आनंद के भाई देव आनंद ने भी 1970 में भारत-चीन युद्ध पर आधारित ‘प्रेम पुजारी’ बनाई। इसमें वहीदा रहमान, शत्रुघ्न सिन्हा और मदन पुरी भी शामिल थे। संगीत एल्बम आज भी लोकप्रिय है लेकिन फिल्म की कहानी दर्शकों को प्रभावित नहीं कर सकी और बॉक्स ऑफिस पर नाकाम रही।
आधुनिक दौर की कोशिशें और नाकामी
4. ट्यूबलाइट (2017): सलमान की पहली असफल वॉर फिल्म

भारत-चीन तनाव के दौर में सलमान खान की ‘ट्यूबलाइट’ आई थी, जिसमें 1962 युद्ध का बैकड्रॉप था। लेकिन फिल्म की धीमी गति, भावनात्मक ओवरडोज़ और कमजोर स्क्रीनप्ले ने दर्शकों को निराश किया। इसे सलमान के करियर की सबसे कमजोर फिल्मों में गिना गया।
5. पलटन (2018): जे.पी. दत्ता का भी जादू नहीं चला

‘बॉर्डर’ जैसी क्लासिक बनाने वाले जे.पी. दत्ता ने ‘पलटन’ बनाई थी, जो भारत-चीन के 1967 के नाथू ला और चो ला संघर्ष पर आधारित थी। अर्जुन रामपाल, सोनू सूद, हर्षवर्धन राणे और गुरमीत चौधरी जैसे कलाकारों की मौजूदगी के बावजूद फिल्म ना सिर्फ फ्लॉप हुई, बल्कि आलोचकों ने इसे बेहद कमजोर बताया।
6. 72 Hours: Martyr Who Never Died (2019)

यह फिल्म राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की वीरगाथा पर आधारित थी, लेकिन सीमित बजट और कमजोर प्रमोशन की वजह से फिल्म बड़े दर्शक वर्ग तक नहीं पहुंच सकी।
7. सूबेदार जोगिंदर सिंह (2018): पंजाबी इंडस्ट्री की कोशिश

गिप्पी ग्रेवाल स्टारर इस फिल्म में भी 1962 के युद्ध की वीरगाथा को दिखाया गया, लेकिन यह फिल्म भी बहुत सीमित दर्शकों तक सिमट गई और व्यावसायिक रूप से असफल रही।
क्यों नहीं चल पातीं भारत-चीन युद्ध पर फिल्में?
भावनात्मक जुड़ाव की कमी:
भारत-पाक युद्धों के मुकाबले, भारत-चीन युद्ध में आमजन की भावनाएं कम जुड़ी हैं। शायद यही कारण है कि दर्शक इन कहानियों से सहज रूप से नहीं जुड़ते।
डिप्लोमैटिक सेंसरशिप:
भारत और चीन के रिश्तों की संवेदनशीलता को देखते हुए फिल्ममेकर्स भी कई बार खुद को सीमित कर लेते हैं।
कम प्रचार और ब्रांड वैल्यू:
इन फिल्मों के प्रमोशन और मार्केटिंग में बॉलीवुड की मेनस्ट्रीम फिल्मों जितना निवेश नहीं किया जाता।
‘बैटल ऑफ गलवान’ से उम्मीद क्यों?

- सलमान खान की स्टार पावर: उनकी फिल्मों को लेकर फैंस की दीवानगी बेमिसाल है। अगर कंटेंट थोड़ा भी प्रभावशाली हुआ, तो फिल्म की ओपनिंग शानदार हो सकती है।
- समय की प्रासंगिकता: गलवान संघर्ष अभी भी लोगों की स्मृति में ताजा है। फिल्म सही तरीके से देशभक्ति और सच्ची घटनाओं को दिखाए तो दर्शक इससे जुड़ सकते हैं।
- उत्तम तकनीक और सिनेमाटोग्राफी की उम्मीद: आज के दौर में युद्ध पर बनी फिल्मों में वीएफएक्स, साउंड डिजाइन और सिनेमेटिक क्वालिटी में बड़ा सुधार हुआ है। यह फिल्म भी उन तकनीकों का फायदा उठा सकती है।
अब तक भारत-चीन युद्ध पर आधारित लगभग हर फिल्म बॉक्स ऑफिस पर असफल रही है, सिवाय ‘हकीकत’ के। ऐसे में ‘बैटल ऑफ गलवान’ एक बड़ा जोखिम भी है और सलमान खान के लिए एक बड़ा मौका भी।
अगर स्क्रिप्ट दमदार रही, तकनीकी पक्ष मजबूत हुआ और देशभक्ति का संदेश दिल से दिया गया, तो यह फिल्म ट्रेंड बदल सकती है।
वरना ये फिल्म भी उन्हीं फिल्मों की कतार में शामिल हो जाएगी, जिन्हें भुला दिया गया।
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