बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए राजनीतिक माहौल गरमा चुका है। सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी महागठबंधन (महागठबंधन) के बीच सीधी टक्कर मानी जा रही है, लेकिन मुकाबला केवल इन दो ध्रुवों तक सीमित नहीं रहेगा। बिहार की सियासत में इस बार तीन नई ताकतें पूरी तैयारी के साथ मैदान में हैं—प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM।
इन तीनों दलों ने बिना किसी गठबंधन के अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर मुकाबले को बहुकोणीय बना दिया है। अब बड़ा सवाल यही है कि क्या ये पार्टियां केवल चुनावी “शोर” बनकर रह जाएंगी या इम्पैक्ट प्लेयर की भूमिका निभाते हुए सत्ता समीकरणों को उलट-पलट देंगी?

प्रशांत किशोर और ‘जन सुराज’ की रणनीति

चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर (PK) ने 2025 में अपनी पार्टी ‘जन सुराज’ को सक्रिय राजनीति में उतारा। 2014 में बीजेपी और 2015 में महागठबंधन की जीत के मास्टरमाइंड रहे PK अब खुद चुनावी मैदान में उतरकर सत्ता की राह तलाश रहे हैं।
पीके की चुनावी रणनीति में युवाओं पर फोकस
बिहार की आबादी में 25 वर्ष से कम उम्र के युवाओं की हिस्सेदारी करीब 57% है। यही वर्ग जन सुराज की राजनीति का केंद्र बिंदु है। रोजगार, शिक्षा और पलायन जैसे मुद्दों को बार-बार उठाकर पीके युवाओं की नाराजगी को वोट में बदलने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
BPSC पेपर लीक कांड और छात्र आंदोलनों में जन सुराज की सक्रिय भागीदारी इस रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है। चर्चित यूट्यूबर मनीष कश्यप की पार्टी में एंट्री भी उसी यूथ-ओरिएंटेड अप्रोच का उदाहरण है।
जातीय संतुलन साधने की कोशिश
प्रशांत किशोर खुद ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। पार्टी में राजपूत नेता उदय सिंह (राष्ट्रीय अध्यक्ष) और दलित चेहरा मनोज भारती (प्रदेश अध्यक्ष) को अहम पद देकर जन सुराज ने सवर्ण-दलित समीकरण साधने की कोशिश की है।
पीके की नजर अब कुर्मी और मुस्लिम वोटबैंक पर है। यदि जन सुराज इन वर्गों में सेंध लगाने में सफल रही, तो नुकसान सीधे एनडीए और महागठबंधन दोनों को होगा।
अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की एंट्री

दिल्ली और पंजाब में सरकार चला चुकी आम आदमी पार्टी (AAP) बिहार में पहली बार फुल स्केल पर चुनाव लड़ने जा रही है। अरविंद केजरीवाल ने साफ कर दिया है कि पार्टी बिना गठबंधन के चुनाव मैदान में उतरेगी।
आप की चुनौती: लोकल चेहरों की कमी और जातीय समीकरण
बिहार की जातीय राजनीति और धरातल पर मजबूत संगठन की कमी आम आदमी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है। आप के पास स्थानीय प्रभावशाली चेहरे और स्थायी कैडर की कमी है, जो राज्य की राजनीति में सफलता के लिए अहम हैं।
आप की ताकत: दिल्ली मॉडल और युवा मतदाता
दिल्ली का शिक्षा मॉडल, मोहल्ला क्लीनिक, मुफ्त बिजली-पानी जैसी योजनाओं के सहारे पार्टी शहरी क्षेत्रों और युवाओं में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। पार्टी का मानना है कि जहां मुकाबला करीबी होगा, वहां किंगमेकर नहीं, “स्पॉइलर” बनने की क्षमता AAP के पास है।
सीमांचल में ओवैसी की AIMIM की दावेदारी

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 2020 के बिहार चुनाव में सीमांचल में अच्छा प्रदर्शन किया था। पार्टी ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा, 1.13% वोट शेयर हासिल किया और 5 सीटें जीत लीं। यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल है, जो आरजेडी के M-Y समीकरण (मुस्लिम-यादव) का अहम हिस्सा रहा है।
आरजेडी को मुस्लिम वोट में सेंधमारी
ओवैसी की पार्टी यदि सीमांचल के मुस्लिम वोटरों को अपने पक्ष में मोड़ने में कामयाब होती है, तो आरजेडी का वोटबैंक दरक सकता है, जो महागठबंधन की स्थिति को कमजोर कर सकता है।
मुद्दों की राजनीति
AIMIM प्रवासी मजदूरों, शिक्षा, स्वास्थ्य और वोटर लिस्ट में गड़बड़ी जैसे मुद्दों को जोर-शोर से उठा रही है। ओवैसी की मुखर राजनीति का असर सीमांचल में NDA और महागठबंधन दोनों के लिए चुनौती बन सकती है।
एनडीए और महागठबंधन के लिए त्रिकोणीय चुनौती

एनडीए की चिंता: वोट बैंक में सेंध
पीके की पार्टी यदि सवर्ण, कुर्मी और युवा वोट खींचती है, तो बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के वोट शेयर में गिरावट संभव है। खासकर शहरी और मध्यम वर्ग में नाराजगी की संभावना को देखते हुए जन सुराज का उदय बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हो सकता है।
महागठबंधन की चिंता: मुस्लिम और युवा वोट
AIMIM की सीमांचल में मौजूदगी और AAP की युवा वर्ग में लोकप्रियता, दोनों ही महागठबंधन के वोटबेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं। जन सुराज भी यदि मुस्लिम युवाओं को आकर्षित करती है, तो RJD की पकड़ कमजोर हो सकती है।
क्या बन पाएंगे इम्पैक्ट प्लेयर?
इन तीनों पार्टियों—जन सुराज, AAP और AIMIM—के पास इतने संसाधन या संगठन नहीं हैं कि वे अकेले सरकार बना सकें, लेकिन करीबी मुकाबले वाली सीटों पर इनके वोट फैसले का रूख तय कर सकते हैं।
जन सुराज बिहार में बदलाव की बात कर रही है,
आप दिल्ली मॉडल लेकर आई है,
AIMIM सीमांचल में अपनी पकड़ मजबूत कर चुकी है।
यानी यह तय है कि ये पार्टियां सीटें भले न जीतें, लेकिन “इम्पैक्ट प्लेयर” के रूप में उभर सकती हैं।
त्रिकोणीय नहीं, पंचकोणीय बनता बिहार का चुनाव

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब सिर्फ NDA बनाम महागठबंधन की लड़ाई नहीं रहा। जन सुराज, AAP और AIMIM के मैदान में उतरने से मुकाबला बहुकोणीय बन चुका है।
इन दलों की भूमिका सीटें जीतने की नहीं, बल्कि मौजूदा समीकरणों को हिला देने वाली हो सकती है। युवा, मुस्लिम, सवर्ण और शहरी वोटर अब निर्णायक बन सकते हैं।
अगले कुछ महीनों में यदि ये पार्टियां जमीनी स्तर पर मजबूत होती हैं, तो 2025 का चुनाव नतीजों के मामले में कई बड़ी पार्टियों को चौंका सकता है।
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