पटना | 9 जुलाई 2025
बिहार की सियासत में एक बार फिर कांग्रेस नेता और पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव चर्चा के केंद्र में हैं। बिहार बंद के दौरान जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी पटना में थे, उस वक़्त पप्पू यादव उनसे मिलने के लिए हाथों में कांग्रेस का झंडा लिए सड़कों पर मौजूद थे, लेकिन फिर भी उनसे मुलाकात नहीं हो सकी। सवाल यह है कि आखिर कांग्रेस में शामिल होने के 16 महीने बाद भी पप्पू यादव को पार्टी में ‘अपना’ क्यों नहीं माना जा रहा?
16 महीने पहले कांग्रेस में विलय, फिर भी हाशिये पर पप्पू

पप्पू यादव ने करीब 9 साल पुरानी जन अधिकार पार्टी (जाप) का कांग्रेस में विलय फरवरी 2024 में दिल्ली में किया था। तब उन्होंने ऐलान किया था कि अब उनकी राजनीतिक यात्रा कांग्रेस के झंडे तले ही पूरी होगी, यहां तक कि उन्होंने कहा था, “मेरी शवयात्रा भी कांग्रेस के झंडे में निकलेगी।” बावजूद इसके, हर बार राहुल गांधी के बिहार आने पर पप्पू यादव को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
इस बार भी नहीं मिल सके राहुल गांधी से
बिहार बंद के दिन राहुल गांधी पटना पहुंचे और आयकर गोलंबर से मार्च शुरू किया। वह जिस ट्रक पर सवार थे, उस पर चढ़ने की कोशिश पप्पू यादव ने भी की, लेकिन उन्हें सुरक्षा गार्डों ने रोक दिया। दिलचस्प यह कि प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार और शकील अहमद खान जैसे अन्य नेताओं को गार्ड्स के इशारे पर चढ़ने दिया गया, लेकिन पप्पू और कन्हैया कुमार दोनों को रोका गया। इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है।
ट्रेन रोक, बंद में दिखाया दम
इस नजरअंदाजी से नाराज पप्पू यादव अपने समर्थकों के साथ सचिवालय हॉल्ट पहुंचे और ट्रेन रोककर बिहार बंद में अपनी भागीदारी दर्ज कराई। उनकी अगुवाई में कार्यकर्ताओं ने पटना-आरा रेलखंड पर ट्रेनों का परिचालन कुछ समय के लिए बाधित कर दिया। इस दौरान आरपीएफ जवानों से नोकझोंक भी हुई। लेकिन दूसरी ओर राहुल गांधी पटना में मार्च और भाषण देकर लौट गए, पप्पू फिर हाशिए पर रह गए।
क्या वजह है लगातार हो रही उपेक्षा की?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस उपेक्षा के पीछे राजद नेता तेजस्वी यादव की असहजता एक बड़ी वजह है। तेजस्वी नहीं चाहते कि पप्पू यादव जैसा प्रभावशाली यादव चेहरा कांग्रेस में उभरे, जो राजद के यादव वर्चस्व को चुनौती दे सके। इसलिए कांग्रेस के कुछ राज्य नेता भी पप्पू को संगठन से दूर रखने में भूमिका निभा रहे हैं।
पूर्णिया की लड़ाई और लालू का ‘खेला’
2024 लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव को उम्मीद थी कि कांग्रेस उन्हें पूर्णिया से उम्मीदवार बनाएगी। 2019 में कांग्रेस के प्रत्याशी उदय सिंह वहां हार चुके थे। लेकिन गठबंधन की राजनीति में लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस से पूर्णिया सीट ले ली और जदयू की बागी विधायक बीमा भारती को वहां से राजद उम्मीदवार बना दिया। इससे नाराज होकर पप्पू यादव निर्दलीय चुनाव लड़े और तीसरी बार पूर्णिया से सांसद बने। बीमा भारती की 27120 वोटों से जमानत जब्त हो गई थी।
कांग्रेस में पुराने नेताओं की दीवार

कहा जा रहा है कि बिहार कांग्रेस के कुछ पुराने नेता पप्पू यादव को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। राजनीतिक जमीन से जुड़े, जनाधार वाले नेता पप्पू यादव को पार्टी में स्थायी जगह न देना, कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान का संकेत देता है। जबकि पप्पू यादव अपनी जनाधार वाली राजनीति और सामाजिक सक्रियता के जरिए कांग्रेस को ज़मीन पर मज़बूत करने की कोशिश में हैं।
एक साथ मंच पर क्यों नहीं आते राहुल-पप्पू?
राहुल गांधी इस साल की शुरुआत से कई बार बिहार आ चुके हैं। कभी दलित समुदाय से संवाद के लिए, तो कभी संविधान बचाओ मुहिम के तहत। लेकिन हर बार पप्पू यादव उनसे कुछ किलोमीटर दूर विरोध करते या भीड़ जुटाते दिखे। यह सिर्फ संयोग नहीं हो सकता। बिहार कांग्रेस और राजद के भीतर की राजनीति, राहुल और पप्पू के मिलने में अब तक सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है।
कांग्रेस को पुनर्विचार की जरूरत
बिहार जैसे राज्य में, जहां विपक्ष महागठबंधन के सहारे भाजपा को चुनौती दे रहा है, वहाँ कांग्रेस यदि जमीनी नेताओं को हाशिये पर रखेगी, तो संगठनात्मक मज़बूती एक सपना बनी रहेगी। पप्पू यादव जैसे जनाधार वाले नेता को लगातार पार्टी से दूर रखना कांग्रेस के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
अब देखना होगा कि क्या राहुल गांधी और कांग्रेस आलाकमान इस अंदरूनी खींचतान को सुलझाकर पप्पू यादव को फिर से पार्टी मंच पर लाने का प्रयास करेंगे या उन्हें यूं ही पार्टी से बाहर रखने की रणनीति चलती रहेगी?
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