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JNU में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के आगमन पर छात्रों का तीव्र विरोध

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JNU उपराष्ट्रपति विरोध
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द्विपक्षीय बहस और टकराव का केंद्र बना दिल्ली का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) गुरुवार को तब सुर्खियों में आया, जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के दौरे के दौरान छात्रों ने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। विरोध करने वालों में JNUSU (जेएनयू छात्र संघ) के सदस्य भी शामिल थे, जिन्होंने कार्यक्रम की शुरुआत से ही अपनी नाराजगी जाहिर की और उपराष्ट्रपति के काफिले को तक रोकने का प्रयास किया। इस बीच, विश्वविद्यालय प्रशासन ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार का सम्मान करते हुए हल्लागड़ी और हिंसा को सख्ती से नकारा। दिल्ली पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था और सतर्कता को भी प्रशंसा मिली।

JNU उपराष्ट्रपति विरोध

घटना का क्रम (Timeline of Events)

  1. आगमन और स्वागत
    उपराष्ट्रपति धनखड़ JNU कैम्पस पहुंचे भारतीय ज्ञान प्रणाली पर आयोजित सेमिनार में मुख्य अतिथि के रूप में।
  2. प्रदर्शन की शुरुआत
    कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही कुछ छात्रों—विशेषकर JNUSU के सदस्य—ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया, जिसमें शिक्षा नीतियों, फीस और छात्र कल्याण जैसे मुद्दे शामिल थे।
  3. काफिले को रोके जाने का प्रयास
    भारी विरोध के बीच कुछ छात्रों ने उपराष्ट्रपति के काफिले को रोकने का प्रयास भी किया, जिससे कैम्पस में अत्यधिक तनाव देखने को मिला।
  4. सुरक्षा के कदम
    अवरोधित काफिले के कारण मौके पर सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था की गई; दिल्ली पुलिस शांतिपूर्ण माहौल बनाए रखने में लगी रही।
  5. विश्‍वविद्यालय की प्रतिक्रिया
    रजिस्ट्रार ने बयान जारी कर बताया कि विश्वविद्यालय छात्रों के शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार का सम्मान करता है, लेकिन काफिले या कार्यक्रम को बाधित करने जैसे “विघटनकारी व्यवहार” की कड़ी निंदा करता है।
  6. जांच प्रक्रिया की शुरुआत
    प्रशासन ने सिक्योरिटी ब्रांच को घटना की विस्तार से जांच करने का निर्देश दिया है, ताकि पूरी घटना स्पष्ट रूप में सामने आए।

रजिस्ट्रार का आधिकारिक बयान

“हम छात्रों के शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार का सम्मान करते हैं, लेकिन… ऐसे विघटनकारी और हिंसात्मक व्यवहार की किसी भी स्थिति में हम अनुमति नहीं देंगे। काफिले को रोका गया—यह अस्वीकार्य है।”

रजिस्ट्रार ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन दिल्ली पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था से संतुष्ट है, जिन्होंने कड़ी सतर्कता के साथ संपूर्ण प्रोग्राम को शांति-पूर्वक संपन्न कराया।


पुलिस की भूमिका और सुरक्षा व्यवस्था

  • तत्परता: पुलिस फोर्स को सटीक निर्देशों के तहत तैनात किया गया, काफिले की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया।
  • शांति पूर्वक निष्पादन की प्रशंसा: प्रशासन और उपस्थित लोगों ने दोनों ने दिल्ली पुलिस की भूमिका की प्रशंसा की, जिससे कार्यक्रम में व्यवधान की स्थिति से बचा गया।

छात्रों के मुद्दे और व्यापक संदर्भ

जेएनयू मौजूदा शैक्षणिक एवं प्रशासनिक परिवेश में कई बार विवादों से जूझ चुका है। हालिया विरोध प्रदर्शनों के प्रमुख मुद्दे हैं:

  • शिक्षा नीतियाँ: केंद्रीय नीति‑नियंत्रण की स्थिति, उच्चशुल्क और छात्र कल्याण पर सतत चिंता।
  • अवसंरचना और आवास: हॉस्टल सुविधा, रसोई और प्लेसमेंट समस्याएं।
  • लोकतांत्रिक अधिकार: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विश्वविद्यालय परिसर में विचारों की बहुलता।

विपक्षी छात्र संगठनों का आरोप है कि प्रशासन उनकी आवाज़ को दबा रहा है और समाधान की जगह सिर्फ सुरक्षा‑उन्मुख जवाबी उपाय ले रहा है।


जांच का लंबा रास्ता

विश्वविद्यालय प्रशासन ने सुरक्षा ब्रांच को घटना की विस्तृत जांच का निर्देश दिया है। इसमें शामिल हैं:

  • काफिले को रोकने की कोशिश में कौन शामिल था?
  • सुरक्षा व्यवस्था में संभावित चूक या देरी की जाँच।
  • JNUSU और अन्य संगठन कितने सक्रिय रूप से जुड़े थे।
  • भविष्य में ऐसे किसी भी टकराव की संभावना का खमियाजा।

जांच रिपोर्ट आने के बाद प्रशासन अपनी प्रतिक्रियाओं और संभावित सुधारात्मक उपायों की घोषणा करेगा।


प्रतिक्रिया: छात्र, प्रशासन, और विशेषज्ञ

छात्र-नेता (JNUSU)

छात्र-नेताओं ने कहा कि उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण था और उनका प्रमुख उद्देश्य था “देश की शिक्षा प्रणाली में सुधार की मांग करना”। उन्होंने प्रशासन द्वारा उनका गलत चित्रण किए जाने का आरोप लगाया और कहा कि:

“हम काफिले को जानबूझकर रोकना नहीं चाहते थे—हमारे इरादे कार्यक्रम को बाधित करने नहीं थे, बल्कि हमारी कई गुम होती आवाज़ों को दस्तक देना था।”

प्रशासन

प्रशासन ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “शांतिपूर्ण विरोध एक बात है, लेकिन जब यह किसी व्यक्ति की सुरक्षा या कार्यक्रम की गरिमा को प्रभावित करता है, वह समाज में अशांति, अव्यवस्था और लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध है।”

सुरक्षा विशेषज्ञ

कुछ सुरक्षा विश्लेषकों का कहना है कि ऐसी घटनाएं सामान्य हैं, लेकिन उच्च पदस्थ व्यक्तियों की सुरक्षा के दौरान यह दुखद है। सुझाव यह है कि भविष्य में दोहरा‑पथ अपनाया जाए:

  1. विरोध स्थानों की पूर्व सूचना व समन्वय
  2. यानी सक्षम संवाद प्रक्रिया, ताकि छात्रमत को कार्यक्रम से दूर किए बिना सुना जा सके

सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव

  • राष्ट्रीय स्तर पर बहस: जेएनयू एक बार फिर शिक्षा-स्वतंत्रता और विज्ञान-पॉलिसी की बहस का केंद्र बना।
  • राजनीतिक आयाम: उपराष्ट्रपति की यात्रा पर हमला करने का राजनीतिक लाभ-दूरगामी प्रभाव होता।
  • विश्वविद्यालयों में नज़रबंदी: यह घटना इस बात का सबक देती है कि उच्च शिक्षा केंद्रों में अपेक्षित स्वायत्तता और अभिव्यक्ति-आंदोलन का सुसंयम ही समाज को संतुलित रख सकता है।

भविष्य की राह

JNU उपराष्ट्रपति विरोध
  • जांच रिपोर्ट पर शिमाना: आगामी सप्ताहों में सुरक्षा ब्रांच की रिपोर्ट प्रकाशित होगी, जिसके बाद राजनीतिक, प्रशासनिक और छात्र‑स्तर पर कार्रवाई की दिशा स्पष्ट होगी।
  • संवाद और समावेश: सुझाव हैं कि विश्वविद्यालय और JNUSU मिल कर नियमित “इंटरएक्टिव फोरम” आयोजित करें, ताकि विस्तार से डायलॉग संभव हो।
  • अंतर‑संस्थागत रणनीति: छात्रों, प्रशासन और सुरक्षा बलों की साझीदारी से संभावित टकरावों से बचा जा सकता है, बजाय सीधे विरोध या रोके जाने।

तथ्य: उपराष्ट्रपति का दौरा शांतिपूर्ण नहीं रहा और तनाव की स्थिति बनी।
खुलापन: रजिस्ट्रार ने विरोध के अधिकार की वकालत की, लेकिन अवरोध के विरुद्ध चेतावनी दी।
शांति बनाम अधिकार: इस घटना ने शिक्षा‑संस्थान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकार‑सुरक्षा के बीच की नाजुक स्थिति को फिर उजागर किया।
आगे की रणनीति: ठोस जांच, संवाद के नए दौर और सूचित समन्वय भविष्य की दिशा को आकार देंगे।

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