दिल्ली , 4 जुलाई 2025
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा एक गंभीर विवाद के केंद्र में आ गए हैं, जब मार्च 2025 में उनके सरकारी आवास पर लगी आग के बाद भारी मात्रा में जली हुई नकदी बरामद हुई। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच समिति ने जस्टिस वर्मा की सफाई को ‘अविश्वसनीय’ मानते हुए उनके खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की है। इसके चलते केंद्र सरकार ने संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिससे देश की न्यायिक व्यवस्था की पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर नई बहस छिड़ गई है।
कैश बरामदगी और जांच की शुरुआत
- 14 मार्च 2025 को गुण्डा आग के दौरान फायर बिग्रेड और दिल्ली पुलिस ने देखा कि आधी जली हुए बड़े ढेर में ₹500 के दार नोट रखे हुए थे, लगभग 1.5 फीट ऊँचे घन में ।
- 22 मार्च 2025 को तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने तीन सदस्यीय जांच पैनल गठित किया जिसमें पंजाब-हरियाणा HC चीफ जस्टिस शीला नागू, HP HC चीफ जस्टिस GS संधवालिया और कर्नाटक HC जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे।
पैनल की पड़ताल और निष्कर्ष
- 55 गवाह—फायर अधिकारी, पुलिस अधिकारी, घरेलू कर्मचारी और परिवार के सदस्यों—से पूछताछ की गई।
- जांच पैनल ने संक्षेप में रिपोर्ट दी कि नगदी उसी स्टोर रूम से मिली थी जिसका नियंत्रण जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के पास था, और घटना के बाद अधिकांश नगदी रात में ही हटा दी गई थी ।
- पैनल ने जस्टिस वर्मा की सफाई को “flat denial” बताया और कहा कि यदि कोई षड्यंत्र होता, तो उन्होंने FIR या सीजेआई/HCJ को सूचित क्यों नहीं किया ।
- जस्टिस वर्मा के पास कोई ठोस प्रमाण नहीं था। पैनल ने निष्कर्ष दिया कि आरोपों में “misconduct” सिद्ध हुआ और उन्हें हटाने की सिफारिश की गई ।

जस्टिस वर्मा की सफाई और शंका
- जस्टिस वर्मा ने आरोपों को “बेलगाम और निराधार” बताते हुए कहा कि स्टोर रूम आम सामानों के लिए था और वे या उनका परिवार उस समय दिल्ली में नहीं थे ।
- उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी प्रतिष्ठा को नुक्सान पहुंचाने की साजिश रची गई, और इसमें वीडियो/तस्वीरें फिर से दिखाए गए — जो “evidence tampering” के लिए संकेत हैं।
- पैनल ने इन दोनों दावों को खारिज करते हुए कहा कि स्थल और गवाह स्वत: विश्वसनीय हैं और कोई बाहरी व्यक्ति स्टोर रूम में प्रवेश नहीं कर सकता था ।
ट्रांसफर और वर्तमान स्थिति
- मार्च 20, 2025 को SC कॉलेजियम ने वर्मा को दिल्ली HC से इलाहाबाद HC ट्रांसफर कर दिया, लेकिन उनके पास कोई न्यायिक प्रभार नहीं था—इसे प्रशासनिक कार्रवाई बताया गया ।
- मई 4–8, 2025 के बीच सीजेआई ने पैनल रिपोर्ट को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजा।
- वर्तमान में वर्मा न्यायिक कार्य से असक्षमता पर हैं और अपना प्रतिक्रिया तैयार कर रहे हैं।
महाभियोग प्रस्ताव: प्रक्रिया और राजनीतिक पहल
- केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया जाएगा और विपक्ष भी समर्थन दे रहे हैं ।
- राज्यसभा में 50 और लोकसभा में 100 सांसदों के हस्ताक्षर एक महत्त्वपूर्ण कदम हैं, और यह 21 जुलाई से 21 अगस्त 2025 को चलने वाले मानसून सत्र में पेश किया जा सकता है ।

संवैधानिक जटिलताएं: स्वतंत्रता या जवाबदेही?
- न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया संविधान (अनुच्छेद 124(4), 217(1)(b)) एवं 1968 अधिनियम के अंतर्गत लंबी और संरक्षित है—जिसका उद्देश्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है।
- लेकिन इस मामले में प्रतिकूल स्वतंत्रता बनाम जवाबदेही की लगातार बहस उभर रही है—क्या यह कार्रवाई पारदर्शिता की ओर पहला सकारात्मक कदम है या राजनीतिक बल का दुरुपयोग?
जनता और न्याय व्यवस्था: विश्वास का झरना
- आम जनता की अदालतों पर गहरी भरोसा है, और जैसा कुछ भी “रंगीन पैसे” से जुड़ा होता है, मौलिक भरोसे को चोट पहुंचा सकता है।
- कुछ कानूनी जानकार इसे जाँच की दिशा में उठाया गया एक साहसिक कदम मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित बताते हुए चिंतित हैं जिससे न्यायपालिका की छवि प्रभावित हो सकती है।
आने वाले महत्वपूर्ण मोड़
- सांसदों से हस्ताक्षर एकत्रित करना शुरू।
- तय करना कि प्रस्ताव लोकसभा या राज्यसभा में पेश होगा।
- मानसून सत्र के दौरान प्रस्ताव प्रस्तुतिकरण।
- यदि पारित किया गया—तो समिति गठन और रिपोर्ट तैयार।
- दोहरे सदन में दो-तिहाई बहुमत से अंतिम वोट।
- राष्ट्रपति के निष्कासन आदेश तक कार्रवाई पूरी।
यह विवाद सिर्फ एक जज की वैधानिक पदच्युत्ता से अधिक है—यह न्यायपालिका की प्रतिष्ठा और उसके भरोसे की कसौटी है। न्यायपालिका को पारदर्शी, जवाबदेह और सशक्त बने रहने की आवश्यकता अब पहले से कहीं अधिक स्पष्ट हो गई है।
संसद के मानसून सत्र में क्या प्रस्ताव का स्वागत होगा या क्या यह ऐतिहासिक निर्णय न्यायपालिका की राह चुन पाएगा—ये आने वाला वक्त तय करेगा। देश इस प्रक्रिया पर नज़र बनाए हुए है।
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