इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि–शाही ईदगाह मस्जिद मामले में हिंदू याचिकाकर्ताओं की यह याचिका खारिज कर दी है, जिसमें मंदिर परिसर में मस्जिद को ‘विवादित ढांचा’ घोषित करने की मांग की गई थी। अदालत ने इस एप्लीकेशन को ‘फिलहाल स्वीकार न करने योग्य’ करार देते हुए आगे की सुनवाई 2 अगस्त 2025 तक के लिए टाल दी है। यह निर्णय हिंदू पक्ष के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, जबकि मस्जिद पक्ष इसे एक कानूनी जीत के रूप में देख रहा है।
पृष्ठभूमि एवं सुनवाई का सारांश
- विवादित भूखंड कटरा केशव देव क्षेत्र, मथुरा में स्थित है जिसकी कुल भूमि 13.37 एकड़ है।
- हिंदू पक्ष दावा करता है कि इस पूरे भूखंड पर श्रीकृष्ण का प्राचीन मंदिर था, जिससे लगभग 11 एकड़ भूमि उनकी योग्यता का हिस्सा है, जबकि मस्जिद पक्ष शेष पर ईदगाह की कानूनी स्वीकृति का दावा करता है।
- 5 मार्च 2025 को हिंदू पक्ष की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में मस्जिद को ‘विवादित ढांचा’ घोषित करने हेतु एक आवेदन दायर किया गया। उनकी दलील थी कि शाही ईदगाह का निर्माण औरंगज़ेब (1670) के आदेश पर पूर्व में मौजूद मंदिर की विध्वंस के बाद किया गया था।
- 23 मई 2025 को दोनों पक्षों की बहस पूरी हुई और अदालत ने इस आवेदन पर सुरक्षित फैसला सुनाया।

अदालत का तर्क
- जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल बेंच ने कहा कि उपलब्ध मौजूदा तथ्यों और प्रस्तुत दस्तावेज़ों के आधार पर अब तक मस्जिद को ‘विवादित ढांचा’ घोषित नहीं किया जा सकता।
- कोर्ट ने विशेष रूप से यह उल्लेख किया कि फिलहाल कोई नवीन पुरातात्विक या ऐतिहासिक प्रमाण प्रस्तुत नहीं किए गए जिससे विवादित घोषित करने की विधिक आधार हो सके।
पक्षकारों की विशेष दलीलें
हिंदू पक्ष (महेंद्र प्रताप सिंह वकील):
- दावा किया कि वहां पहले जो प्राचीन मंदिर था, उसके खंडहरों पर मस्जिद का निर्माण किया गया था।
- मस्जिद पक्ष कोर्ट में कोई ठोस दस्तावेज या ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं पेश कर पाया, इसलिए इसे हटाकर विवादित घोषित किया जाना चाहिए — वैसे ही जैसा अयोध्या में बाबरी मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित किया गया था।
मुस्लिम पक्ष:
- अदालत ने अभी तक किसी धर्मघट संरचना का “धर्म-संरूप” नहीं माना।
- स्थान का पक्षपातविहीन तथ्य होना जरूरी है, अदालत का निर्णय सबूतों पर आधारित होना चाहिए।
आगे की कार्यवाही
- अगली सुनवाई अब 2 अगस्त 2025 को होगी, जिसमें दोनों पक्षों को नए साक्ष्य और तर्क प्रस्तुत करने का मौका मिलेगा।
- न्यायालय आगे निर्णय ले सकता है कि कोई विशेष तौर पर पुरातत्त्व सर्वेक्षण कराया जाए या अधिकारों की पड़ताल हो।

कानूनी एवं सामाजिक असर
हिंदू पक्ष:
- तत्काल यह याचिका अस्वीकार हो जाने से उन्हें स्थिरार्थ नुकसान हुआ है।
- महाभूमि पर कब्जे या मंदिर की बहाली को लेकर उनकी मांग फिलहाल रुकी हुई है।
- लेकिन अदालत ने अभी पूरे विवाद को खारिज नहीं किया—शायद अगली सुनवाई में कड़ी बहस का मौका मिल सकता है।
मुस्लिम पक्ष:
- मामला फिलहाल उनके पक्ष में</span> मजबूत हुआ — मस्जिद को विवादित नहीं घोषित करने से उनकी कानूनी स्थिति सुरक्षित बनी है।
- Historic & religious status की रक्षा हुई, पर विवाद लंबित ही रहता है।
समाज एवं न्यायपालिका:
- अयोध्या की विधि-रूपरेखा से मिलते-जुलते फैसलों के बीच, यह याचिका अब प्राचीन संरचनाओं की पहचान और विवाद केँूप पर एक नया मुकाम कसके रखती है।
- अदालत का निर्णय दर्शाता है कि पुरातात्विक प्रमाण और न्यायदर्शिता सुनिश्चित करना कितना महत्वपूर्ण है।

मथुरा संवाद में यह हाईकोर्ट का निर्णयशिला साबित रूप है—जहाँ तत्काल राहत तो हुई, लेकिन अंतिम न्यायसम्मत समाधान अभी टल गया है। अदालत ने मामले को गंभीरता से लेते हुए फयसलादेश और साबितियान की मांग की है। अब अगली पीढ़ी की सुनवाई तक दोनों पक्ष नये ऐतिहासिक एवं सुधारात्मक साक्ष्यों के साथ तैयार रहेंगे।
देश की न्यायिक दलीलें—ऐतिहासिक प्रमाण, धार्मिक भावना, और कानूनी स्थिरता के बीच तार से लटकी हैं। आगे का परिदृश्य तय करेगा कि क्या यह विवाद बिना हल रहकर जातीय व धार्मिक संवेदनाओं पर स्थायी असर छोड़ता है, या नया न्यायिक संतुलन बनाकर आगे बढ़ता है।
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