लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आयकर विभाग ने बाबू बनारसी दास (BBD) ग्रुप के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई करते हुए करीब ₹100 करोड़ की बेनामी संपत्तियों को जब्त किया है। यह कार्रवाई बेनामी संपत्ति निषेध अधिनियम, 1988 (संशोधित 2016) के तहत की गई है, जो राज्य के सबसे चर्चित संपत्ति जब्ती मामलों में से एक बन गई है।
इस कार्रवाई से लखनऊ के कारोबारी, शिक्षा और रियल एस्टेट क्षेत्र में भारी हलचल मच गई है। बेनामी संपत्तियों के असली लाभार्थियों में BBD ग्रुप की चेयरपर्सन अलका दास, उनके बेटे विराज सागर दास, और दो कंपनियां — विराज इंफ्राटाउन प्रा. लि. और हाईटेक प्रोटेक्शन इंडिया प्रा. लि. शामिल हैं।
कौन हैं बाबू बनारसी दास ग्रुप?
BBD ग्रुप एक प्रतिष्ठित शिक्षा और रियल एस्टेट समूह है, जिसकी पहचान मुख्यतः BBD यूनिवर्सिटी, इंजीनियरिंग कॉलेज, और अन्य शैक्षिक संस्थानों से जुड़ी है। इसकी नींव पूर्व केंद्रीय मंत्री और राजनेता अखिलेश दास ने रखी थी।
अखिलेश दास के निधन के बाद, समूह की कमान उनकी पत्नी श्रीमती अलका दास और बेटे विराज सागर दास ने संभाली। ग्रुप का मुख्यालय लखनऊ में है और यह अयोध्या रोड सहित कई प्रमुख लोकेशनों में बड़ी ज़मीनी हिस्सेदारी रखता है।
कहां-कहां की गई संपत्तियां जब्त?
आयकर विभाग की बेनामी निषेध इकाई ने जिन संपत्तियों को जब्त किया है, वे लखनऊ के अयोध्या रोड के आसपास स्थित हैं, जो तेजी से विकसित हो रहे रियल एस्टेट हब माने जाते हैं।

जब्त की गई प्रमुख ज़मीनें:
- उत्तरधौना
- जुग्गौर
- 13 खास
- सरायशेख
- सेमरा ग्राम
ये सभी ज़मीनें BBD यूनिवर्सिटी के आसपास स्थित हैं, जहां BBD ग्रुप के कई प्रोजेक्ट्स पहले से चल रहे हैं। विभाग की जांच में सामने आया कि ये संपत्तियां 2005 से 2015 के बीच खरीदी गई थीं और इनकी वर्तमान बाजार कीमत ₹100 करोड़ से भी अधिक हो सकती है।
बेनामीदार के नाम पर दर्ज की गईं संपत्तियां
जांच में सामने आया कि ये संपत्तियां BBD समूह से जुड़े कर्मचारियों, सहयोगियों और छोटी कंपनियों के नाम पर खरीदी गई थीं। विभाग ने पाया कि इन व्यक्तियों के पास इतनी बड़ी संपत्ति खरीदने का कोई वैध स्रोत नहीं था।
इन संपत्तियों को खरीदने और रजिस्ट्रेशन कराने के पीछे असली उद्देश्य असली मालिकों — यानी अलका दास और विराज सागर दास — की पहचान छिपाना था। यही कारण है कि यह मामला बेनामी संपत्ति के दायरे में आता है।
जांच में क्या-क्या सामने आया?
आयकर विभाग ने इस कार्रवाई से पहले महीनों तक छानबीन की। विभिन्न प्रॉपर्टी डीड्स, बैंक ट्रांजैक्शन, रजिस्ट्रेशन डॉक्युमेंट्स और बेनामीदारी की स्थिति की समीक्षा के बाद यह स्पष्ट हुआ कि BBD ग्रुप के प्रमुख लोगों ने सुनियोजित तरीके से ज़मीनें खरीदीं और उन्हें नाम मात्र के कर्मचारियों या कंपनियों के नाम पर दर्ज करवा दिया।
प्रमुख खुलासे:
- संपत्तियां दो कंपनियों के नाम पर दर्ज – विराज इंफ्राटाउन और हाईटेक प्रोटेक्शन इंडिया प्रा. लि.
- असली लाभार्थी – अलका दास और विराज सागर दास
- रजिस्टर्ड मालिकों के पास आय का कोई वैध स्रोत नहीं
- रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स के लिए रणनीतिक लोकेशन पर खरीदी गई ज़मीनें
बेनामी संपत्ति निषेध अधिनियम के तहत कार्रवाई
यह पूरी कार्रवाई बेनामी संपत्ति निषेध अधिनियम, 1988 के तहत की गई, जिसे 2016 में संशोधित किया गया था। यह कानून केंद्र सरकार को अधिकार देता है कि वह बेनामी तरीके से खरीदी गई संपत्तियों को जब्त कर सके और दोषियों पर सख्त कार्रवाई कर सके।
इस अधिनियम के तहत:
- दोषियों को 7 साल तक की सजा और 25% तक जुर्माना हो सकता है।
- जब्त की गई संपत्तियां सरकार की संपत्ति बन जाती हैं।
- दोषियों पर प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत भी मामला चलाया जा सकता है।
जांच और गहराई में जाएगी
आयकर विभाग के सूत्रों के अनुसार, यह कार्रवाई केवल एक शुरुआत है। अब विभाग उन अन्य संपत्तियों और वित्तीय लेन-देन की भी जांच करेगा, जो BBD ग्रुप और उसके निदेशकों से जुड़े हैं।
संभावित जांच के क्षेत्र:
- अन्य कंपनियों के ट्रांजैक्शन
- शैक्षणिक संस्थानों की फंडिंग
- विदेशी निवेश या संपत्तियां
- कर्मचारियों के नाम पर अन्य प्रॉपर्टी
आयकर विभाग जल्द ही अलका दास और विराज सागर दास से पूछताछ कर सकता है और आवश्यकता पड़ी तो प्रवर्तन निदेशालय (ED) और CBI को भी जांच में शामिल किया जा सकता है।
शैक्षिक संस्थान की छवि पर असर
BBD यूनिवर्सिटी और ग्रुप से जुड़े अन्य शैक्षिक संस्थानों की छवि पर इस कार्रवाई का नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हजारों छात्रों और स्टाफ से जुड़े इस समूह की साख अब सवालों के घेरे में है।
शहर में चर्चा है कि यदि आगे जांच में और गंभीर तथ्य सामने आते हैं तो यूनिवर्सिटी की मान्यता, फंडिंग और एडमिशन प्रक्रिया पर भी असर पड़ सकता है।

लखनऊ में BBD ग्रुप के खिलाफ की गई ₹100 करोड़ की बेनामी संपत्ति की कार्रवाई ने एक बार फिर यह साबित किया है कि आयकर विभाग अब हाई-प्रोफाइल मामलों पर भी सक्रिय रूप से नजर रखे हुए है।
इस केस में जिस तरह से कर्मचारियों और शेल कंपनियों के नाम पर ज़मीनें ली गईं और असली मालिकों की पहचान छुपाई गई, वह भारत में रियल एस्टेट क्षेत्र में चल रही काली कमाई और बेनामी लेन-देन की गहराई को दिखाता है।
अब यह देखना होगा कि आयकर विभाग की अगली कार्रवाई किन दिशाओं में जाती है और क्या BBD ग्रुप के खिलाफ और भी गंभीर सबूत सामने आते हैं।
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