09 जुलाई 2025

लखनऊ से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है जिसने न सिर्फ सरकारी महकमों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि यह भी उजागर कर दिया है कि पेंशन प्रणाली में कैसे वर्षों तक फर्जीवाड़ा किया जा सकता है।
यह मामला लखनऊ के तेलीबाग इलाके का है, जहां आलोक तिवारी नामक एक शख्स ने अपने मृत पिता को कागजों पर जिंदा दिखाकर सालों तक पेंशन हड़प ली। इस दौरान उसने एक और व्यक्ति को किराए पर हायर कर अधिकारियों के सामने अपने मृत पिता के रूप में पेश किया ताकि पेंशन मिलती रहे।
हालांकि, इस साल दस्तावेजों की सत्यापन प्रक्रिया के दौरान यह फर्जीवाड़ा उजागर हो गया और अब आलोक तिवारी को पेंशन विभाग द्वारा रिकवरी नोटिस भेजा गया है।
कैसे हुआ पूरा फर्जीवाड़ा?
पिता की मौत छिपाकर पेंशन निकालता रहा बेटा
तेलीबाग निवासी प्रेम शंकर तिवारी, उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा विभाग से रिटायर्ड शिक्षक थे। उनका कुछ वर्ष पहले निधन हो गया था। लेकिन उनके बेटे आलोक तिवारी ने पिता की मौत की सूचना न तो विभाग को दी और न ही किसी तरह का मृत्यु प्रमाण पत्र जमा कराया।
इसके बजाय, उसने एक अन्य व्यक्ति को किराए पर हायर किया, जो प्रेम शंकर तिवारी बनकर पेंशन विभाग के अधिकारियों के सामने उपस्थित होता रहा। इस फर्जी बाप की मौजूदगी की बदौलत आलोक तिवारी पेंशन जारी रखने में कामयाब रहा और हर महीने की रकम अपने खाते में लेता रहा।

कब और कैसे खुला राज?
दस्तावेज सत्यापन में हुआ खुलासा
2025 की शुरुआत में जब विभागीय स्तर पर पेंशन दस्तावेजों का पुनः सत्यापन शुरू हुआ, तब इस मामले में संदेह पैदा हुआ। अधिकारियों ने जब दायर फोटो को पुराने दस्तावेजों से मिलाया तो पाया गया कि वर्तमान में मौजूद व्यक्ति की तस्वीर प्रेम शंकर तिवारी से मेल नहीं खा रही।
इसके बाद गहराई से जांच की गई और पाया गया कि प्रेम शंकर तिवारी की मृत्यु कई साल पहले ही हो चुकी थी, और विभाग से पेंशन धोखे से ली जा रही थी।
रिकवरी का नोटिस, पर FIR नहीं
जांच में सच्चाई सामने आने के बाद पेंशन विभाग ने आलोक तिवारी को रिकवरी का नोटिस भेजा है। हालांकि, हैरानी की बात यह है कि अब तक कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया गया है।
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि यदि आलोक तिवारी वसूली की राशि जमा नहीं करता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
पेंशन घोटालों की बढ़ती संख्या: सिर्फ एक मामला नहीं
पिछले दो वर्षों में कई चौंकाने वाले खुलासे
पेंशन विभाग के अधिकारी मानते हैं कि यह कोई पहला मामला नहीं है। पिछले दो वर्षों में उत्तर प्रदेश में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां मृत लोगों के नाम पर पेंशन जारी रहती रही और उनके रिश्तेदार या अन्य लोग उस राशि का फायदा उठाते रहे।
कुछ उदाहरण:
- गोरखपुर में 2024 में एक मामला सामने आया था, जहां एक महिला अपने मृत पति के नाम पर पांच साल तक पेंशन लेती रही।
- कानपुर में एक मृत सरकारी कर्मचारी की बहन ने बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत से हर महीने उसकी पेंशन निकालनी जारी रखी।
ये सभी मामले प्रशासनिक ढिलाई और सिस्टम की कमजोरियों को उजागर करते हैं।

इस फर्जीवाड़े से जुड़े गंभीर सवाल
1. सत्यापन प्रणाली की कमजोरी
ऐसे फर्जीवाड़ों को वर्षों तक चलने देने में सिस्टम की खामियों की बड़ी भूमिका है। पेंशन पाने वालों की जीवित प्रमाण-पत्र प्रणाली (Life Certificate Process) अभी भी कई राज्यों में ऑनलाइन नहीं हो पाई है, जिससे स्थानीय स्तर पर गड़बड़ी करना आसान हो जाता है।
2. प्राथमिकी दर्ज करने में ढिलाई
ऐसे मामलों में एक सख्त संदेश देने के लिए तत्काल FIR दर्ज होनी चाहिए। लेकिन अक्सर देखा गया है कि विभाग पहले वसूली के प्रयास करता है और कानूनी कार्रवाई को अंतिम विकल्प मानता है, जिससे अपराधियों को बच निकलने का मौका मिल जाता है।
3. किराए के व्यक्ति को पेश करने की जुर्रत कैसे हुई?
इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि एक व्यक्ति को किराए पर लेकर सरकारी अधिकारियों के सामने पेश करना संभव हुआ। इसका मतलब या तो अधिकारियों ने लापरवाही बरती या फिर इसमें भी मिलीभगत की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
भविष्य में ऐसे घोटालों से बचाव कैसे संभव?
डिजिटल जीवन प्रमाण-पत्र को अनिवार्य किया जाए
भारत सरकार की Jeevan Pramaan जैसी डिजिटल सुविधाओं को सभी राज्य पेंशन योजनाओं से अनिवार्य रूप से जोड़ा जाए।
नियमित बायोमेट्रिक सत्यापन
पेंशन लेने वालों का बायोमेट्रिक सत्यापन हर 6 महीने में जरूरी किया जाए ताकि मृत लोगों की पहचान तुरंत हो सके।
एफआईआर की अनिवार्यता
किसी भी तरह की धोखाधड़ी सामने आने पर बिना देरी के एफआईआर दर्ज हो और सख्त कार्रवाई हो।
बैंक अधिकारियों की भूमिका की समीक्षा
अगर पेंशन सीधे खाते में जमा हो रही है, तो बैंक की भूमिका की भी जांच जरूरी है कि क्या उन्होंने कोई संदेहजनक गतिविधि नोट की या नहीं।
केवल एक पेंशन घोटाला नहीं, यह एक सिस्टमिक फेलियर है
लखनऊ का यह मामला यह दिखाता है कि सरकारी सिस्टम में किस तरह से चुपचाप भ्रष्टाचार हो सकता है। आलोक तिवारी का अपने पिता की मौत छिपाना, एक फर्जी व्यक्ति को किराए पर लाकर पेश करना और वर्षों तक पेंशन लेते रहना, केवल उसकी जालसाजी नहीं बल्कि सिस्टम की कमजोरियों का भी परिणाम है।
यदि इस मामले में कड़ी कार्रवाई नहीं हुई तो यह दूसरों को भी ऐसे अपराध करने की प्रेरणा देगा।
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