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वक़्फ़ संशोधन क़ानून विवाद के बीच सऊदी अरब की यात्रा करेंगे पीएम मोदी, क्या सऊदी प्रिंस से इस मुद्दे पर होगी बात..?

वक़्फ़ संशोधन क़ानून विवाद के बीच सऊदी अरब की यात्रा करेंगे पीएम मोदी, क्या सऊदी प्रिंस से इस मुद्दे पर होगी बात..?

भारतीय प्रधानमंत्री मोदी 22 और 23 अप्रैल को क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के न्योते पर सऊदी अरब जाएंगे। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी तीसरी बार सऊदी अरब जा रहे हैं। इससे पहले 2016 और 2019 में मोदी सऊदी अरब गए थे।

भारत में वक़्फ़ संशोधन क़ानून को लेकर विवाद

दरअसल, पीएम मोदी का सऊदी अरब दौरा इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि, इन दिनों भारत में वक़्फ़ संशोधन क़ानून को लेकर काफ़ी विवाद है। इस मुद्दे को लेकर भारत के मुस्लिम नेतृत्व और विपक्ष भी इससे ख़फ़ा है। कई राज्यों में इसके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। क्योंकि, देशभर में फैली वक़्फ़ की 9.4 लाख एकड़ संपत्तियों में वक़्फ़ बोर्ड का नियंत्रण 8.7 लाख एकड़ ज़मीन पर है, इसके अलावा आर्म्ड फोर्सेज और भारतीय रेलवे के बाद तीसरे नंबर वक़्फ़ है, जिसके पास सबसे ज़्यादा ज़मीन का मालिकाना हक़ है।

वक़्फ़ की संपत्तियां धार्मिक और परोपकार के लिए होती हैं

बता दें कि, वक़्फ़ की संपत्तियां धार्मिक और परोपकार के मक़सद के लिए होती हैं, इसके अलावा ये संपत्तियां न तो इस्तेमाल की जा सकती हैं और न ही बेंची जा सकती हैं। लेकिन वक़्फ़ संशोधन बिल संसद में पास होने के बाद यह क़ानून बन गया है।  साल 1995 के वक़्फ़ एक्ट में कई तरह के बदलाव हुए हैं। अब वक़्फ़ की संपत्तियों में केंद्र सरकार की भूमिका बढ़ गई है।

वक़्फ़ बोर्ड में मु्स्लिम महिला और ग़ैर-मुसलमानों का भी प्रतिनिधित्व

लेकिन अब नए क़ानून के मुताबिक़ वक़्फ़ बोर्ड में मु्स्लिम महिला और ग़ैर-मुसलमानों का भी प्रतिनिधित्व होगा। अगर किसी वक़्फ़ संपत्ति की पहचान सरकारी ज़मीन के रूप में होती है, तो उसे वक़्फ़ नहीं माना जाएगा। इसके अलावा वक़्फ़ बोर्ड के पास संपत्तियों की जाँच के लिए जो अधिकार था, उसे भी ले लिया गया है। साथ ही केंद्र सरकार के पास अब रजिस्ट्रेशन, वक़्फ़ के अकाउंट के प्रकाशन और वक़्फ़ बोर्ड की प्रक्रिया के प्रकाशन का भी अधिकार होगा।

वक़्फ़ के खातों की जाँच का आदेश

इसके अलावा केंद्र सरकार अब सीएजी या किसी अन्य अधिकारी को वक़्फ़ के खातों की जाँच का आदेश दे सकती है।  सबसे ज़्यादा चिंता इस बात पर जताई जा रही है कि वक़्फ़ बोर्ड की ताक़त को कम कर ज़िले के डीएम को यह अधिकार दे दिया है कि विवादित ज़मीन वक़्फ़ की है या नहीं, वही तय करेगा। वहीं विपक्ष ने वक़्फ़ संशोधन क़ानून को असंवैधानिक और विभाजनकारी बताया है। जबकि, मुस्लिम नेताओं का कहना है कि सरकार वक़्फ़ की संपत्तियों को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है।

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