पीएम मोदी जी-7 शिखर सम्मेलन में शामिल होने कनाडा पहुंचे थे। पीएम मोदी के कनाडा जाने पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पीएम मोदी को आमंत्रित किया था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निमंत्रण को विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कनाडा से लौटते समय वाशिंगटन में रुकने का आग्रह को अस्वीकार करने के भारत के इस फैसले को कूटनीति, क्षेत्रीय समीकरणों और वैश्विक रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। पीएम मोदी के इस फैसले को इजरायल-ईरान युद्ध के साथ ही भारत के दोनों देशों के साथ संबंध, कूटनीतिक संतुलन और सामरिक हित के रुप में अहम माना जा सकता है। पीएम मोदी के निर्णय को अमेरिका को संदेश के रूप में भी देखा जा सकता है। पीएम मोदी का अमेरिका न जाना इस बात का संकेत है कि भारत मध्य पूर्व में अपनी संतुलित कूटनीति को बनाए रखना चाहता है।

अमेरिका में ट्रंप के साथ मुलाकात से भारत की तटस्थ छवि को नुकसान पहुंच सकता था, खासकर तब जब इजरायल और ईरान के बीच तनाव चरम पर है। भारत ने इजरायल के साथ अपने रक्षा सहयोग को मजबूत करते हुए भी यह सुनिश्चित किया है कि यह ईरान के साथ उसके संबंधों को प्रभावित न करें। हालांकि, पीएम मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप से कहा कि, प्रधानमंत्री पहले से की गई प्रतिबद्धताओं के कारण वो अभी अमेरिका दौरा नहीं कर सकते हैं। हालांकि, दोनों नेताओं ने जल्द ही मिलने की कोशिश करने पर सहमति जताई है। भारत ने हमेशा मध्य पूर्व में तटस्थता की नीति अपनाई है।

भारत ने हमेशा पाकिस्तान के साथ अपने मुद्दों को द्विपक्षीय रूप से हल करने पर जोर दिया है। ऐसे में मोदी का यह निर्णय इस रुख को और मजबूत करता है। ट्रंप के साथ फोन पर 35 मिनट की बातचीत में भी मोदी ने स्पष्ट किया कि भारत-पाकिस्तान तनाव में अमेरिका की मध्यस्थता की कोई भूमिका नहीं थी। गौरतलब है कि, अमेरिका पहले भी कई बार और हाल ही में पाकिस्तान की तरफ नरम रुख अपना और दिखा चुका है। इसके अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऑपरेशन सिंदूर में सीजफायर कराने का दावा किया था।

इधर, भारत और इजरायल के बीच भी कुछ सालों से डिफेंस, टेक्नोलॉजी और ट्रेड के क्षेत्र में गहनता देखी गयी है। तो जाहिर है इजरायल भारत का एक महत्वपूर्ण रक्षा साझेदार है। एक तरफ जहां दोनों देशों के बीच मिसाइल डिफेंस सिस्टम, ड्रोन टेक्नोलॉजी और साइबर सिक्योरिटी जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा है। तो वहीं दूसरी तरफ ट्रंप प्रशासन ने इजरायल-ईरान युद्ध में इजरायल का खुलकर समर्थन किया है, जिससे भारत की तटस्थता की नीति पर असर पड़ सकता है। इधर, भारत और ईरान के बीच विशेष रूप से चाबहार बंदरगाह परियोजना और ऊर्जा क्षेत्र में ऐतिहासिक और सामरिक संबंध हैं। ईरान भारत के लिए मध्य एशिया तक पहुंच का एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार है। ट्रंप की ईरान विरोधी नीतियों, विशेष रूप से इजरायल-ईरान युद्ध में उनकी एकतरफा स्थिति, ने भारत को सतर्क रहने के लिए प्रेरित किया।

ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की आतंकवाद के प्रति “जीरो टॉलरेंस” नीति को दर्शाया। भारत ने ऑपरेशन के तहत पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ठिकानों पर भारत की सटीक सैन्य कार्रवाई थी। जिसपर ट्रंप ने दावा किया था कि, उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर में मध्यस्थता की थी। हालांकि, इसे भारत ने बार-बार खारिज किया। पीएम मोदी ने ट्रंप से फोन पर बातचीत में स्पष्ट किया कि, सीजफायर पाकिस्तान के अनुरोध पर हुआ, न कि किसी ट्रेड डील या अमेरिकी मध्यस्थता के कारण। ट्रंप की इस गलत बयानी ने भारत में उनकी छवि को प्रभावित किया, और मोदी का अमेरिका न जाना इस बात का संकेत है कि, भारत अपनी स्वतंत्र नीति और संप्रभुता पर कोई समझौता नहीं करेगा। मोदी का अमेरिका न जाना भारत की स्वतंत्र और संतुलित विदेश नीति का प्रतीक है।

भारत न केवल मध्य पूर्व में इजरायल और ईरान के बीच संतुलन बनाए रखना चाहता है, बल्कि पाकिस्तान के साथ अपने मुद्दों को भी स्वतंत्र रूप से हल करना चाहता है। ट्रंप की मध्यस्थता की पेशकश और उनकी पाकिस्तान के प्रति नरम नीति ने भारत को सतर्क रहने के लिए प्रेरित किया। ऑपरेशन सिंदूर पर भारत के दृढ़ रुख और ट्रंप के दावों का खंडन इस बात को दर्शाता है कि, भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीतिक स्वायत्तता को सर्वोपरि मानता है। यह निर्णय न केवल भारत की क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिति को मजबूत करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि, भारत अपनी नीतियों को बाहरी दबावों से प्रभावित होने से बचाएगा।
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